Krishna Janmashtami-Krishna Janmashtami Puja Muhurat 2018
Krishna Janmashtami is observed as the birth anniversary of Lord Krishna. Krishna Janmashtami is also known as Gokulashtami, Shrikrishna Jayanti and just Janmashtami. In Gujarat Krishna Janmashtami is also known as Satam Atham and in South India especially in Kerala Krishna Janmashtami is observed as Ashtami Rohini.
Janmashtami is the annual celebration of the birth anniversary of Lord Krishna and it is celebrated throughout India.
Janmashtami Origin | Significance
Janmashtami is getting observed since the birth era of Lord Krishna. Janmashtami is the 5200+ years old ritualistic celebration of the birth anniversary of Lord Krishna. As per Vedic time chronology, in 2015 it would be the 5242th birth anniversary of Lord Krishna.
Krishna Janmashtami is significant event in most Krishna temples. The cities and towns which are related to Lord Krishna, Janmashtami is a household celebration. In the historic cities, Mathura, Vrindavan and Dwarka Krishna Janmashtami is celebrated as the birth anniversary of a family member.
Janmashtami Deity(s)
The main deity which is worshipped during Janmashtami is Lord Krishna. As Janmashtami is the birth anniversary of Lord Krishna, the toddler form of Lord Krishna, which are known as Bal Gopal and Laddu Gopal, are worshipped on the day of Krishna Janmashtami.
Apart from young Lord Krishna, the biological parents of Lord Krishna i.e. Vasudeva and Devaki, the foster parents of Lord Krishna i.e. Nanda and Yashoda and the siblings of Lord Krishna i.e. Balabhadra (Lord Balarama) and Subhadra are also worshipped during Janmashtami Puja.
Janmashtami Festivals List
At most places, Janmashtami celebrations last for 2 days.
Day 1 – Krishna Janmashtami
Day 2 – Dahi Handi
Janmashtami Observance
a day long fast
worshipping Bal Krishna during midnight
visiting Krishna temple
cooking sweet dishes specially made of milk product
Janmashtami Regional Variance
Most people in India celebrate Krishna Janmashtami based on Lunar Calendar but few temples and some regions in South India observe Krishna Janmashtami based on Solar Calendar. In most years these dates don’t differ by one or two days but in some years Janmashtami date based on Lunar Calendar and Janmashtami date based on Solar Calendar might differ up to one month.
In Kerala, Tamil Nadu and in some parts of Karnataka, Krishna Janmashtami is popularly known as Ashtami Rohini and is observed based on Solar Calendar.
Janmashtami Public Life
Krishna Janmashtami is an optional gazetted holiday in India. However, most government offices, schools and colleges keep one day off during Krishna Janmashtami.
Janmashtami Similar Festivals
Ashtami Rohini – Krishna Janmashtami in Kerala
Dahi Handi – Traditional sport as played by Lord Krishna
श्री कृष्ण जन्माष्टमी
देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती है, एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।
कब हुआ श्री कृष्ण का जन्म
जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्री कृष्ण का जन्म का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
अगले पांच सालों के लिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव की तारीख पता करें | Know the dates for Krishna Janmashtami festival for next five years
२ सितंबर २०१८ | रविवार |
२३ अगस्त २०१९ | शुक्रवार |
१० सितंबर २०२० | गुरूवार |
३० अगस्त २०२१ | सोमवार |
१८ अगस्त २०२२ | गुरूवार |
भगवान श्री कृष्ण की कहानी | Story of Lord Krishna in Hindi
हमारी प्राचीन कहानियों का सौंदर्य यह है कि वे कभी भी विशेष स्थान या विशेष समय पर नहीं बनाई गई हैं। रामायण या महाभारत प्राचीन काल में घटी घटनाएं मात्र नहीं हैं। ये हमारे जीवन में रोज घटती हैं। इन कहानियों का सार शाश्वत है।
श्री कृष्ण जन्म की कहानी का भी गूढ़ अर्थ है। इस कहानी में देवकी शरीर की प्रतीक हैं और वासुदेव जीवन शक्ति अर्थात प्राण के। जब शरीर प्राण धारण करता है, तो आनंद अर्थात श्री कृष्ण का जन्म होता है। लेकिन अहंकार (कंस) आनंद को खत्म करने का प्रयास करता है। यहाँ देवकी का भाई कंस यह दर्शाता है कि शरीर के साथ-साथ अहंकार का भी अस्तित्व होता है। एक प्रसन्न एवं आनंदचित्त व्यक्ति कभी किसी के लिए समस्याएं नहीं खड़ी करता है, परन्तु दुखी और भावनात्मक रूप से घायल व्यक्ति अक्सर दूसरों को घायल करते हैं, या उनकी राह में अवरोध पैदा करते हैं। जिस व्यक्ति को लगता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है, वह अपने अहंकार के कारण दूसरों के साथ भी अन्यायपूर्ण व्यवहार करता है।
अहंकार का सबसे बड़ा शत्रु आनंद है। जहाँ आनंद और प्रेम है वहां अहंकार टिक नहीं सकता, उसे झुकना ही पड़ता है। समाज में एक बहुत ही उच्च स्थान पर विराजमान व्यक्ति को भी अपने छोटे बच्चे के सामने झुकना पड़ जाता है। जब बच्चा बीमार हो, तो कितना भी मजबूत व्यक्ति हो, वह थोडा असहाय महसूस करने ही लगता है। प्रेम, सादगी और आनंद के साथ सामना होने पर अहंकार स्वतः ही आसानी से ओझल होने लगता है । श्री कृष्ण आनंद के प्रतीक हैं, सादगी के सार हैं और प्रेम के स्रोत हैं।
कंस के द्वारा देवकी और वासुदेव को कारावास में डालना इस बात का सूचक है कि जब अहंकार बढ जाता है तब शरीर एक जेल की तरह हो जाता है। जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, जेल के पहरेदार सो गये थे। यहां पहरेदार वह इन्द्रियां है जो अहंकार की रक्षा कर रही हैं क्योंकि जब वह जागता है तो बहिर्मुखी हो जाता है। जब यह इन्द्रियां अंतर्मुखी होती हैं तब हमारे भीतर आंतरिक आनंद का उदय होता है।
श्री कृष्ण का दूसरा नाम “माखन चोर” – का अर्थ
श्री कृष्ण माखनचोर के रूप में भी जाने जाते हैं। दूध पोषण का सार है और दूध का एक परिष्कृत रूप दही है। जब दही का मंथन होता है, तो मक्खन बनता है और ऊपर तैरता है। यह भारी नहीं बल्कि हल्का और पौष्टिक भी होता है। जब हमारी बुद्धि का मंथन होता है, तब यह मक्खन की तरह हो जाती है। तब मन में ज्ञान का उदय होता है, और व्यक्ति अपने स्व में स्थापित हो जाता है। दुनिया में रहकर भी वह अलिप्त रहता है, उसका मन दुनिया की बातों से / व्यवहार से निराश नहीं होता। माखनचोरी श्री कृष्ण प्रेम की महिमा के चित्रण का प्रतीक है। श्री कृष्ण का आकर्षण और कौशल इतना है कि वह सबसे संयमशील व्यक्ति का भी मन चुरा लेते हैं।
श्री कृष्ण के सिर पर मोर पंख का महत्व | Significance of peacock feather on Lord Krishna’s head
एक राजा अपनी पूरी प्रजा के लिए ज़िम्मेदार होता है। वह ताज के रूप में इन जिम्मेदारियों का बोझ अपने सिर पर धारण करता है। लेकिन श्री कृष्ण अपनी सभी जिम्मेदारी बड़ी सहजता से पूरी करते हैं – एक खेल की तरह। जैसे किसी माँ को अपने बच्चों की देखभाल कभी बोझ नहीं लगती। श्री कृष्ण को भी अपनी जिम्मेदारियां बोझ नहीं लगतीं हैं और वे विविध रंगों भरी इन जिम्मेदारियों को बड़ी सहजता से एक मोरपंख (जो कि अत्यंत हल्का भी होता है) के रूप में अपने मुकुट पर धारण किये हुए हैं।
श्री कृष्ण हम सबके भीतर एक आकर्षक और आनंदमय धारा हैं। जब मन में कोई बेचैनी, चिंता या इच्छा न हो तब ही हम गहरा विश्राम पा सकते हैं और गहरे विश्राम में ही श्री कृष्ण का जन्म होता है।यह समाज में खुशी की एक लहर लाने का समय है – यही जन्माष्टमी का संदेश है। गंभीरता के साथ आनंदपूर्ण बनें
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