Ahoi Ashtami 2018
अहोई अष्टमी व्रत आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी आयु व मनोकामना को लेकर कार्तिक कृष्ण अष्टमी व्रत रखा जाता है। इस साल यह व्रत बुधवार को यानि आज मनाया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि अहोई अष्टमी का व्रत करने से अहोई माता खुश होकर बच्चों की सलामती का आशीर्वाद देती हैं। संतान की सलामती से जुड़े इस व्रत का बहुत महत्व है। इस व्रत को हर महिला अपने बच्चे के स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए करती हैं। कुछ महिलाएं इस व्रत को संतान की प्राप्ति के लिए भी करती हैं: पढ़ें अहोई अष्टमी का व्रत कथा
एक साहूकार के 7 बेटे थे और एक बेटी थी। साहुकार ने अपने सातों बेटों और एक बेटी की शादी कर दी थी. अब उसके घर में सात बेटों के साथ सातबहुंएं भी थीं।
साहुकार की बेटी दिवाली पर अपने ससुराल से मायके आई थी. दिवाली पर घर को लीपना था, इसलिए सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं. ये देखकरससुराल से मायके आई साहुकार की बेटी भी उनके साथ चल पड़ी।
साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटीकी खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया. इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटीभाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं सात पुत्रोंकी इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरीइच्छा हो वह मुझ से मांग ले. साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं. यदि आप मेरी कोख खुलवा देतो मैं आपका उपकार मानूंगी. गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।
रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनीके बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहूने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है. गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है. स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है. स्याहु छोटीबहू को सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं का आर्शीवाद देती है। और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देकर उद्यापन किया।
अहोई का अर्थ एक यह भी होता है ‘अनहोनी को होनी बनाना.’ जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकारकी बहु की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करें।
अहोई अष्टमी कब है?
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली (Diwali) से आठ दिन पहले रखा जाता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को आता है. इस बार अहोई अष्टमी 31 अक्टूबर को है.
अहोई अष्टमी की तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 31 अक्टूबर 2018 को सुबह 11 बजकर 09 मिनट से.
अष्टमी तिथि समाप्त: 01 नवंबर 2018 को सुबह 09 बजकर 10 मिनट तक.
पूजा का शुभ समय: 31 अक्टूबर 2018 को शाम 05 बजकर 45 मिनट से शाम 07 बजकर 02 मिनट तक.
कुल अवधि: 1 घंटे 16 मिनट.
तारों को देखने का समय: 31 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 12 मिनट.
चंद्रोदय का समय: 1 नवंबर 2018 को रात 12 बजकर 06 मिनट.
अहोई अष्टमी का महत्व उत्तर भारत में अहोई अष्टमी के व्रत का विशेष महत्व है. इसे ‘अहोई आठे’ भी कहा जाता है क्योंकि यह व्रत अष्टमी के दिन पड़ता है. अहोई यानी के ‘अनहोनी से बचाना’. किसी भी अमंगल या अनिष्ट से अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं. यही नहीं संतान की कामना के लिए भी यह व्रत रखा जाता है. इस दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं और पूरे दिन पानी की बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं. दिन भर के व्रत के बाद शाम को तारों को अर्घ्य दिया जाता है. हालांकि चंद्रमा के दर्शन करके भी यह व्रत पूरा किया जा सकता है, लेकिन इस दौरान चंद्रोदय काफी देर से होता है इसलिए तारों को ही अर्घ्य दे दिया जाता है. वैसे कई महिलाएं चंद्रोदय तक इंतजार करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण करती हैं. मान्यता है कि इस व्रत के प्रताप से बच्चों की रक्षा होती है. साथ ही इस व्रत को संतान प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम माना गया है.
अहोई अष्टमी की पूजा विधि -
– अहोई अष्टमी के दिन सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
– अब घर के मंदिर में पूजा के लिए बैठें और व्रत का संकल्प लें.
– अब दीवार पर गेरू और चावल से अहोई माता यानी कि मां पार्वती और स्याहु व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. आजकल बाजार में रेडीमेड तस्वीर भी मिल जाती है.
– अब मां पार्वती के चित्र के सामने चावल से भरा हुआ कटोरा, मूली, सिंघाड़े और दीपक रखें.
– अब एक लोटे में पानी रखें और उसके ऊपर करवा रखें. इस करवे में भी पानी होना चाहिए. ध्यान रहे कि यह करवा कोई दूसरा नहीं बल्कि करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया होना चाहिए. दीपावली के दिन इस करवे के पानी का छिड़काव पूरे घर में किया जाता है.
– अब हाथ में चावल लेकर अहोई अष्टमी व्रत कथा पढ़ने के बाद आरती उतारें.
– कथा पढ़ने के बाद हाथ में रखे हुए चावलों को दुपट्टे या साड़ी के पल्लू में बांध लें.
– शाम के समय दीवार पर बनाए गए चित्रों की पूजा करें और अहोई माता को 14 पूरियों, आठ पुओं और खीर का भोग लगाएं.
– अब माता अहोई को लाल रंग के फूल चढ़ाएं.
– अहोई अष्टमी व्रत की कथा पढ़ें.
– अब लोटे के पानी और चावलों से तारों को अर्घ्य दें.
– अब बायना निकालें. इस बायने में 14 पूरियां या मठरी और काजू होते हैं. इस बायने को घर की बड़ी स्त्री को सम्मानपूर्वक दें.
– पूजा के बाद सास या घर की बड़ी महिला के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें. - अब घर के सदस्यों में प्रसाद बांटने के बाद अन्न-जल ग्रहण करें.
करें राशिनुसार सरल उपाय
31 अक्टूबर को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में होंगे और अपनी ही कर्क राशि में गोचर कर रहे होंगे।
मेष – चंद्रमा का चतुर्थ गोचर होगा सुख की बृद्धि होगी इसलिए माता को सौभाग्य की प्राप्ति के लिए सिंदुर अवश्य चढ़ावें ।
वृष – चन्द्रमा का तीसरा गोचर होगा जो आपके संकल्प शक्ति बढ़ाने वाला होगा इसलिए शिव को सफेद चंदन अवश्य अर्पित करें।
मिथुन – चन्द्रमा का दुसरा गोचर होने के कारण द्रव्य दक्षिणा माता को देना न भूलें आपके घर में भी द्रव्य की कमी नहीं होगी ।
कर्क – चन्द्रमा का पहला गोचर होने के कारण उत्तम स्वास्थ्य के लिए फल का भोग अवश्य लगाना चाहिए।
सिंह – चन्द्रमा का बारहवां गोचर होने के कारण रोग भय होगा इसलिए व्रत के दौरान शिव के महामृत्यूंजय की एक माला अवश्य जप करना चाहिए।
कन्या – चन्द्रमा का एकादश गोचर होने के कारण लाभ जीवन भर बना रहे माता पार्वति को सफेद पुष्प की माला अर्पित करें।
तुला – दसम गोचर होने के कारण जो कामकाजी महिला हैं वो अपने कार्यक्षेत्र में बरकत के लिए यथाशक्ति श्रींगार प्रसाधन अर्पित करें।
वृश्चिक – नवम गोचर होने के कारण धर्म की बृद्धि हो इसलिए कथा सुनने के साथ दुसरों को कथा सुनाना भी लाभ प्रद होगा।
धनु – अष्टम गोचर होने के कारण मन में व्याकुलता बनी रहेगी, मन को एकाग्र कर शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जप करना चाहिए।
मकर – सप्तम गोचर होने के कारण सांसारिक सुखों की कामना होगी । माता को घर में बना हुआ मीठा पकवान या खीर अर्पित करें।
कुंभ – छठा गोचर होने के कारण शत्रुओं या विपत्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए माता को आलता अर्पित करें।
मीन – पंचम गोचर होने के कारण अपने प्रारब्ध से प्राप्त पाप के नाश के सौभाग्य की प्राप्ति के लिए सिंदुर अर्पित करना न भूलें