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Kalratri Mata – Navratri Seventh Day

Kalratri Mata – Navratri Seventh Day

 

Kalratri Mata is worshipped on the seventh day of Navratri. She is considered quite a violent form of Maa Parvati. Her name means: ‘Kaal’ – time/death & ‘Ratri’ – night. As per her name, she is considered as the destroyer of darkness.

About Kalratri

Goddess Kalratri has dark black complexion. She rides on a donkey. The Goddess has 4 hands; both right hands stay in Abhaya and Varada Mudra; and the left 2 hands carry sword and a hook weapon.

Legend

As the legend goes, there were 2 demons – Shumbha and Nishumbha, who had captured the entire Devlok (holy abode of Devas). The King of the Gods, Indra was defeated badly. In order to get their home back, they sought help from Maa Parvati. While they were explaining the entire story to her, she was bathing inside. In order to help them, she sent Chandi to help them.

When Goddess Chandi went to the demons for war, Shumbha and Nishumbha sent Chanda and Munda to fight. Hence, she created Maa Kalratri to kill them. After killing them, she got the name Chamunda. After that, Raktabeej arrived. This demon had the capability of recreating his body with his blood. Everytime Goddess killed him and his blood spilled on the ground, the demon made a new body for himself. So, Kalratri Durga decided to drink all his blood, so that nothing drops down on the floor; and it actually worked!

There are many other legends associated with Kaalratri. One of them tells how Maa Parvati became Durga. As per that legend, the demon Durgasur was trying to attack Kailash (the holy abode of Shiva-Parvati) in the absence of Maa Parvati. So, she sent Kal Ratri for dealing with him. The guards of the demons tried to attack Kala Ratri, but she grew bigger and bigger in size. Eventually, she got too powerful to handle. Durgasura had to leave, but Maa Kalratri told him that his death is near. Another time when Durgasur tried to attack Kailasha, Maa Parvati fought with him and killed him. Hence, she got the name Durga.

Astrological Aspect

Planet Saturn (Shani) is ruled by the Kalratri Mata. Worshipping her helps in pacifying the ill effects of this planet.

 

माँ कालरात्रि – नवरात्रि का सातवाँ दिन

माता कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। इन्हें देवी पार्वती के समतुल्य माना गया है। देवी के नाम का अर्थ- काल अर्थात् मृत्यु/समय और रात्रि अर्थात् रात है। देवी के नाम का शाब्दिक अर्थ अंधेरे को ख़त्म करने वाली है।

माता कालरात्रि का स्वरूप

देवी कालरात्रि कृष्ण वर्ण की हैं। वे गधे की सवारी करती हैं। देवी की चार भुजाएँ हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबिक बाएँ दोनों हाथ में क्रमशः तलवार और खडग हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ नामक दो दानव थे जिन्होंने देवलोक में तबाही मचा रखी थी। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्रदेव की हार हो गई और देवलोक पर दानवों का राज हो गया। तब सभी देव अपने लोक को वापस पाने के लिए माँ पार्वती के पास गए। जिस समय देवताओं ने देवी को अपनी व्यथा सुनाई उस समय देवी अपने घर में स्नान कर रहीं थीं, इसलिए उन्होंने उनकी मदद के लिए चण्डी को भेजा।

जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा। तब देवी ने माँ कालरात्रि को उत्पन्न किया। तब देवी ने उनका वध किया जिसके कारण उनका नाम चामुण्डा पड़ा। इसके बाद उनसे लड़ने के लिए रक्तबीज नामक राक्षस आया। वह अपने शरीर को विशालकाय बनाने में सक्षम था और उसके रक्त (खून) के गिरने से भी एक नया दानव (रक्तबीज) पैदा हो रहा था। तब देवी ने उसे मारकर उसका रक्त पीने का विचार किया, ताकि न उसका खून ज़मीन पर गिरे और न ही कोई दूसरा पैदा हो।

माता कालरात्रि को लेकर बहुत सारे संदर्भ मिलते हैं। आइए हम उनमें से एक बताते हैं कि देवी पार्वती दुर्गा में कैसे परिवर्तित हुईं? मान्यताओं के मुताबिक़ दुर्गासुर नामक राक्षस शिव-पार्वती के निवास स्थान कैलाश पर्वत पर देवी पार्वती की अनुपस्थिति में हमला करने की लगातार कोशिश कर रहा था। इसलिए देवी पार्वती ने उससे निपटने के लिए कालरात्रि को भेजा, लेकिन वह लगातार विशालकाय होता जा रहा था। तब देवी ने अपने आप को भी और शक्तिशाली बनाया और शस्त्रों से सुसज्जित हुईं। उसके बाद जैसे ही दुर्गासुर ने दोबारा कैलाश पर हमला करने की कोशिश की, देवी ने उसको मार गिराया। इसी कारण उन्हें दुर्गा कहा गया।

ज्योतिषीय संदर्भ

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

Mantras (मंत्र)

ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥

Prarthana Mantra (प्रार्थना मंत्र):

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा। वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

Stuti (स्तुति):

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

Dhyana Mantra (ध्यान मंत्र):

करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्। कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥
दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्। अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥
महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा। घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्। एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

Stotra (स्त्रोत):

हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती। कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी। कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी। कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

Kavacha Mantra:

ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि। ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम। कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि। तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥

नवरात्रि के सातवें दिन माता दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी का यह रूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करनेवाला है। सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा करके हम अपने क्रोध पर विजय पाना सीखते हैं। कालरात्रि साधक को ज्ञान देती हैं कि अपने क्रोध का उपयोग स्वयं की सफलता के लिए कैसे करना है। सप्तमी की पूजा सुबह में अन्य दिनों की तरह ही होती है परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है। पंडालों में जहां मूर्ति लाकर माता की पूजा की जाती है वहां पर सप्तमी तिथि के दिन सुबह माता को नेत्र प्रदान किए जाते हैं और माता आपने भक्तों को प्रथम दर्शन देती हैं और अपने भक्तों को कृपादृष्टि बरसाती हैं।

दुर्गा पूजा का सातवां दिन तंत्र क्रिया की साधना करनेवाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करनेवाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं। इस दिन मां की आंखें खुलती हैं। दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है।

दुर्गा जी का सातवां स्वरूप कालरात्रि है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है। इनके बाल बिखरे हुए हैं तथा इनके गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ हैं जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे कांटा धारण किया हुआ है।

इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है। इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें शुभंकारी भी कहते हैं।

महत्व

मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है। माता कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं। मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं। कहते हैं कि श्रद्धा के साथ आराधना करने वाले भक्तों की इच्छा जरूर पूरी होती है। कहते हैं कि सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोक मुक्त हो सकता है।

मां कालरात्रि का मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

कथा

एक प्रचलित कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।

उपरोक्त जानकारियों के साथ हम उम्मीद करते हैं कि नवरात्रि का सातवाँ दिन आपके लिए ख़ास होगा और देवी कालरात्रि की कृपा आपके सपरिवार के ऊपर बरसेगी।

चैत्र नवरात्रि की सप्तमी की ढेरों शुभकामनाएँ!

 

With this, we hope that you will make the best of Navratri’s seventh day. May Kalratri Maa blesses you with all the goodness of life.

Happy Navratri!

6 comments

  1. […] seen having four hands and riding a lion. Color of the day remains Orange. ●  Day 7: Kalratri: Maa Kalratri is known to be the ferocious form of Goddess Durga and worshipped on Saptami. Color of the day […]

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